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नवरात्रि की शुभकामनाओं सहित दुर्गा आगमन पर यह विशेष भेंट - "देवलोक से चलली भवानी" [देवी गीत का वीडियो link: 1st Comment में]

मेरा बचपन दुमका, जमशेदपुर, राँची व बोकारो के आस-पास के क्षेत्रों में बीता। इन क्षेत्रों में बँगाल की संस्कृति का बहुत ही अधिक प्रभाव है और यह दुर्गा पूजा में स्पष्ट दिखता था। एक से एक बने कलात्मक पूजा पंडालों में भक्तगण बड़ी श्रद्धा से माता की भव्य मूर्ति स्थापित कर भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते।
वैसे दुर्गा माई के प्रति श्रद्धा तो पटना-शाहाबाद के क्षेत्र में भी अपार है, पर भव्य पंडाल आदि का प्रचलन पिछले दशक में ही अधिक पनपा है। पूजा समितियों की आपस में मानो होड़ सी लगती है कि किसका पंडाल कितने लाख का है, कितना ऊँचा है, विशाल है, सजावट कितनी है आदि। यह सब करने में कहीं ना कहीं माता के प्रति भक्ति भाव, बड़े-बड़े पंडालों के बोझ तले दब सा जाता है।

क्या इतना बाहरी तामझाम आवश्यक है? या फिर देवी की शक्ति, उनकी पूजा, मन, क़र्म व वाणी की शुचिता, पाप पर पुण्य की विजय के संदेश पर मुख्य फोकस हो?

1 year ago | [YT] | 188