Abhishek Singh Rao | अभिषेक सिंह राव

संसद में अब #जयचंद शब्द को बैन कर दिया गया है। अभी तक यह नाम किसी को गद्दार बताने के लिए प्रयोग में लिया जाता था। लेकिन इंटरनेट के दौर में सच्चाई सबके सामने आ चुकी है कि जयचंद गद्दार नहीं अपितु एक वीर देशभक्त था और उसकी राष्ट्रनिष्ठा पर प्रश्न उठाना भी मूर्खता है। सरकार का यह निर्णय उन इतिहासकारों के गाल पर जोर का तमाचा है जिन्होंने इतने वर्षों तक जयचंद को बदनाम किया।
हमारे देश के बेईमान इतिहासकारों ने ऐसा झूठ गढ़ा कि मोहम्मद गोरी को भारत आने का और पृथ्वीराज के साथ तराइन का दूसरा युद्ध करने का न्योता जयचंद ने दिया था इसलिए वह देशद्रोही कहा जाएगा। लेकिन सच्चाई तो यह है कि तराइन के दूसरे युद्ध के पहले भी गोरी कईं बार भारत पर आक्रमण कर चूका था और इतिहास में एक भी ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि तराइन के युद्ध के लिए जयचंद जिम्मेदार था। जबकि इतिहास खंगालें तो उल्टा यह पता चलता है कि पृथ्वीराज के बाद जयचंद ने ही गोरी के लिए सबसे बड़ी चुनौतियाँ खड़ी की। उन्होंने ही गोरी की सेना से एक भीषण युद्ध किया और वीरगति को भी प्राप्त हो गए।
जयचंद की मृत्यु के बाद मुसलमानों ने कन्नौज को हथिया लिया लेकिन आगे जयचंद के वंशजों ने भी मलेच्छों से संघर्ष जारी रखा और अंततः कन्नौज से उन्हें खदेड़ कर दिल्ली के आसपास सिमित कर दिया। जयचंद के वंश के कारण ही कन्नौज के हिन्दू, इस्लामी सत्ता से मुक्त हो सकें। यही कारण था कि मुसलमान जयचंद और उसके पुरे वंश से असीमित घृणा करने लगे। उनके इतिहासकारों ने जयचंद को बदनाम करने की मंशा से यह झूठ गढ़ा कि पृथ्वीराज की मृत्यु का कारण जयचंद था और वह देशद्रोही था।
आगे वामपंथी एवं इस्लामिस्ट इतिहासकारों ने भी इसी बात को दोहराया। उन्होंने जयचंद जैसे देशभक्तों को गद्दार कहा और जो वास्तव में गद्दार थे उन्हें 'महान' बताया।
सरकार ने भले ही औपचारिकता वश यह निर्णय लिया है लेकिन अब गेंद हिन्दू समाज के पाले में हैं। हिन्दू समाज इन मक्कार इतिहासकारों की धूर्तता को समझें और जयचंद को उनका सम्मान प्रदान करें।

2 years ago | [YT] | 109