कुछ और नही बस हिंदी को विश्व पटल पर सबको अपनाते हुए देख रहा हूँ और , औऱ भी देखना चाहता हूँ।
दिनकर की परिपाटी को आगे ले जाने की चाह है।

हिंदी कविता एवं कवि दोनों ही मेरे हृदय में विराजमान है ।

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